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अर्जुन की छाल के फायदे – Benefits of Arjun Ki Chhal
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सदियों से आयुर्वेद में सदाबहार वृक्ष अर्जुन को औषधि के रुप में ही इस्तेमाल किया गया है। आम तौर पर अर्जून की छाल और रस का औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अर्जून नामक बहुगुणी सदाहरित पेड़ की छाल यानि अर्जुन की छाल के फायदे का प्रयोग हृदय संबंधी बीमारियों , क्षय रोग यानि टीबी जैसे बीमारी के अलावा सामान्य कान दर्द, सूजन, बुखार के उपचार के लिए किया जाता है।

अर्जुन का परिचय (Introduction of Arjun)

सदियों से आयुर्वेद में सदाबहार वृक्ष अर्जुन को औषधि के रुप में ही इस्तेमाल किया गया है। आम तौर पर अर्जून की छाल और रस का औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अर्जून नामक बहुगुणी सदाहरित पेड़ की छाल यानि अर्जुन की छाल के फायदे का प्रयोग हृदय संबंधी बीमारियों , क्षय रोग यानि टीबी जैसे बीमारी के अलावा सामान्य कान दर्द, सूजन, बुखार के उपचार के लिए किया जाता है।

अर्जुन कितना गुणकारी जड़ी बूटी ये बात तो समझ में आ ही गया है लेकिन आगे ये किन-किन बीमारियों के लिए फायदेमंद है और अर्जुन छाल का क्षीरपाक कैसे बनाया जाता है इसके बारे में  विस्तार से जानते हैं।

 अर्जुन क्या है? (What is Arjuna in Hindi?)

अर्जुन पेड़ का अर्जुन‘ नामकरण केवल इसके स्वच्छ सफेद रंग के आधार पर किया गया है। अर्जुन शब्द का संस्कृत में यौगिक अर्थ सफेद, स्वच्छ,  होता है। पांडवकुमार अर्जुन से इस पेड़ का कोई खास सम्बन्ध नजर नहीं आता। इस पेड़ के संस्कृत नामों में पार्थ, धनंजय आदि जो पर्यायवाची नाम दिए गए हैं, वे केवल वैद्यक काव्य अर्जुन शब्दार्थ बोधक शब्द की योजना करने के लिए ही दिए गए हैं और उनका कोई खास तात्पर्य नहीं मालूम होता है।

अर्जुन प्रकृति से शीतल, हृदय के लिए हितकारी, कसैला; छोटे-मोटे कटने-छिलने पर, विष, रक्त संबंधी रोग, मेद या मोटापा, प्रमेह या डायबिटीज, व्रण या अल्सर, कफ तथा पित्त कम होता है। अर्जुन से हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण-क्रिया अच्छी होती है। मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन ठीक और सबल होती है। सूक्ष्म रक्तवाहिनियों (artery)  का संकोच होता है, इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे सूजन कम होती है।

अन्य भाषाओं में अर्जुन के नाम (Name of  Arjuna in Different Languages)

अर्जुन का वानास्पतिक नाम Terminalia arjuna (Roxb. ex DC.) W. & A. (टर्मिनेलिया अर्जुन) Syn-Pentaptera arjuna Roxb. ex. DC. होता है। अर्जुन Combretaceae (कॉम्ब्रेटेसी) कुल का है और अंग्रेजी में इसको Arjuna myrobalan (अर्जुन मायरोबलान) कहते हैं। लेकिन भारत के अन्य प्रांतों में अर्जुन अनेक नामों से जाना जाता है।

Arjun in-

Sanskrit-अर्जुन, नदीसर्ज :  , वीरवृक्ष, वीर, धनंजय, कौंतेय, पार्थ :   धवल;

Hindi-अर्जुन, काहू, कोह, अरजान, अंजनी, मट्टी, होलेमट्ट;

Odia- अर्जुन (Arjun);

Urdu-अर्जन (Arjan);

Assamese-ओर्जुन (Orjun);

Konkani-होलेमट्टी (Holematti);

Kannada-मड्डी (Maddi), बिल्लीमड्डी (Billimaddi), निरमथी (Nirmathi) होलेमट्टी (Holematti);

Gujrati-अर्जुन (Arjun), सादादो (Sadado), अर्जुनसदारा (Arjunsadara);

Tamil-मरुदु (Marudu), अट्टूमारूतू (Attumarutu), निरमारूदु (Nirmarudu), वेल्लईमरुदु (Vellaimarudu);

Telegu-तैललामद्दि (Tellamadi), इरमअददी (Erumdadi), येरमददी (Yermaddi);

Bengali-अर्जुन गाछ (Arjun Gach), अरझान (Arjhan);

Nepali-काहू (Kaahu);

Panjabi-अरजन (Arjan);

Marathi-अंजन (Anjan), सावीमदात (Savimadat);

Malayalam-वेल्लामरुटु (Velamarutu)।

English- व्हाइट मुर्दाह (White murdah);

Arbi-अर्जुन पोस्त (Arjun post)।

अर्जुन के फायदे  (Arjuna Uses and Benefits in Hindi)

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अर्जुन के पेड़ को एक प्रभावी औषधि के रूप में लंबे समय से उपयोग किया जा रहा है। इसके फल और छाल को औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया गया है। अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले टैनिन, पोटैशियम, मैग्नीशियम और कैल्शियम जैसे पोषक तत्व इसे औषधीय दृष्टि से अत्यंत उपयोगी बनाते हैं। टैनिन एक प्रमुख तत्व है जो सूजन कम करने और शरीर की कोशिकाओं को मजबूती प्रदान करने में सहायक होता है। वहीं, पोटैशियम और मैग्नीशियम हृदय की सेहत को बेहतर बनाने में मदद करते हैं, जबकि कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है। कान के दर्द में अर्जुन का लाभ अर्जुन के पत्तों का रस कान के दर्द में एक प्राकृतिक उपचार है। पत्तों से निकाले गए ताजे रस की 3-4 बूंदें कान में डालने से दर्द में तुरंत राहत मिलती है। अर्जुन का यह गुण सूजन को कम करने और दर्द को शांत करने में सहायक होता है, जिससे यह कान के दर्द के लिए एक प्रभावी और सुरक्षित विकल्प बनता है। मुखपाक (मुँह के छाले) के लिए अर्जुन का उपयोग अर्जुन मूल चूर्ण को तिल के तेल (मीठा तैल) के साथ मिलाकर मुँह के अंदर लेप करने से मुँह के छालों (मुखपाक) में आराम मिलता है। इसके बाद गुनगुने पानी से कुल्ला करने से घाव जल्दी भरते हैं और मुँह की सूजन और जलन कम होती है। यह विधि मुँह के संक्रमण को ठीक करने और घाव को तेजी से भरने में सहायक होती है। अर्जुन के अन्य स्वास्थ्य लाभ अर्जुन न केवल कान और मुँह के लिए उपयोगी है बल्कि यह हृदय स्वास्थ्य के लिए भी प्रसिद्ध है। इसकी छाल का काढ़ा रक्तचाप को नियंत्रित करता है और दिल की धड़कन को सामान्य बनाए रखता है। इसके अलावा, अर्जुन की छाल का उपयोग श्वसन समस्याओं, घावों को भरने और शरीर के डिटॉक्स में भी किया जाता है। अर्जुन का यह बहुआयामी औषधीय उपयोग इसे आयुर्वेद में एक अनमोल औषधि बनाता है। प्राकृतिक और सुलभ होने के कारण यह घरेलू उपचारों में भी प्रमुख भूमिका निभाता है।

हृदय को स्वस्थ रखे अर्जुन की छाल (Arjun Chaal Benefits for Healthy Heart in Hindi)

 अर्जुन की छाल के फायदे हृदय रोग में सबसे ज्यादा होते हैं, लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि अर्जुन की छाल का प्रयोग कैसे करें इसके बारे में सही जानकारी होनी चाहिए-

  • हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में 1 चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही लाभ होता है।
  • अर्जुन छाल के 1 चम्मच महीन चूर्ण को मलाई रहित 1 कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय को बल मिलता है और कमजोरी दूर होती है। इससे हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।
  • 50 ग्राम गेहूँ के आटे को 20 ग्राम गाय के घी में भून लें, गुलाबी हो जाने पर 3 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण और 40 ग्राम मिश्री तथा 100 मिली खौलता हुआ जल डालकर पकाएं, जब हलुवा तैयार हो जाए तब प्रात सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि विकारों में लाभ होता है।
  • 6-10 ग्राम अर्जुन छाल चूर्ण में स्वादानुसार गुड़ मिलाकर 200 मिली दूध के साथ पकाकर छानकर पिलाने से हृद्शोथ का शमन होता है।
  • 50 मिली अर्जुन छाल रस, (यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर, 4 ली जल में पकाएं। जब चौथाई शेष रह जाए तो क्वाथ को छान लें), 50 ग्राम गोघृत तथा 50 ग्राम अर्जुन छाल कल्क में दुग्धादि द्रव पदार्थ को मिलाकर मन्द अग्नि पर पका लें। घृत मात्र शेष रह जाने पर ठंडा कर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के पात्र में रखें। इस घी को 5 ग्राम  प्रात सायं गोदुग्ध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से हृद्विकारों का शमन होता है तथा हृदय को बल मिलता है।
  • हृदय रोगों में अर्जुन की छाल के कपड़छन चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। इसे सारबिट्रेट गोली के स्थान पर प्रयोग करने पर उतना ही लाभकारी पाया गया। हृदय की धड़कन बढ़ जाने पर, नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुंत शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती तथा एलोपैथिक की प्रसिद्ध दवा डिजीटेलिस से भी अधिक लाभप्रद है। यह उच्च रक्तचाप में भी लाभप्रद है। उच्च रक्तचाप के कारण यदि हृदय में शोथ (सूजन) उत्पन्न हो गयी हो तो उसको भी दूर करता है।

पेट की गैस ऊपर आने में करे मदद अर्जुन (Arjuna for Burping in Hindi)

अर्जुन की छाल आयुर्वेद में पेट संबंधी समस्याओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी मानी जाती है। यह एसिडिटी, जिसे आयुर्वेद में "उदावर्त्त" कहा जाता है, के उपचार में सहायक होती है। एसिडिटी आमतौर पर गलत खान-पान, तनाव और असंतुलित जीवनशैली के कारण होती है। अर्जुन की छाल में पाचक और शांतकारी गुण होते हैं, जो पेट में अतिरिक्त अम्लता को नियंत्रित करने और पाचन तंत्र को संतुलित रखने में मदद करते हैं। इसका काढ़ा बनाकर नियमित सेवन करने से एसिडिटी में राहत मिलती है और पेट की परत को सुरक्षा मिलती है। यह कब्ज, पेट दर्द और अन्य पाचन समस्याओं में भी लाभकारी है। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण आंतरिक ऊतकों को स्वस्थ रखते हैं। हालांकि, गर्भवती महिलाओं और दवाओं पर निर्भर व्यक्तियों को इसे लेने से पहले चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए। अर्जुन की छाल एक प्राकृतिक और प्रभावी उपाय है जो पेट की समस्याओं से राहत दिलाने के साथ पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाता है।

रक्तातिसार या पेचिश से दिलाये राहत अर्जुन (Arjuna Beneficial in Dysentery in Hindi)

अर्जुन की छाल और पत्तियों का स्वास्थ्यवर्धक उपयोग

 अर्जुन छाल और पत्तियों का आयुर्वेद में हृदय, पाचन और रक्त विकारों के उपचार में अद्वितीय स्थान है। अर्जुन छाल का चूर्ण दूध और पानी के साथ पकाकर बनाया गया पेय हृदय संबंधी विकारों को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावी है। इसे नियमित रूप से सुबह पीने से हृदय की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और रक्त प्रवाह सुचारू होता है। साथ ही यह पेय जीर्ण ज्वर, रक्तज-अतिसार (दस्त), और रक्तपित्त जैसी समस्याओं में भी लाभकारी है। दूध के साथ पकाए गए अर्जुन छाल के पेय में मिश्री मिलाने से इसका स्वाद बढ़ता है और यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। इसके अलावा, अर्जुन की पत्ती, बेल, जामुन, मृणाली, श्रीपर्णी, मेहंदी, और धाय की पत्तियों का उपयोग खडयूष (संग्राहिक औषधि) तैयार करने में होता है। इन पत्तियों के रस में घृत (घी), लवण (नमक), और अम्ल (खट्टे पदार्थ) मिलाकर तैयार किए गए खडयूष पाचन सुधारने, गैस, और आंतरिक सूजन कम करने में मदद करते हैं। ये खडयूष शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करते हैं। इस प्रकार, अर्जुन और अन्य औषधीय पौधों का यह मिश्रण संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

डायबिटीज को करे कंट्रोल अर्जुन (Benefits of Arjun Chaal to Control Diabetes in Hindi)


पित्तज-प्रमेह, जो आयुर्वेद के अनुसार पित्त दोष से उत्पन्न होता है, में शरीर के द्रव्यों का असंतुलन और मूत्र विकार जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी (आंवला), हल्दी, और नीलकमल के समभाग चूर्ण का काढ़ा इस समस्या के लिए अत्यधिक प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार है। इन औषधियों के मिश्रण में प्राकृतिक शीतलता और पित्त संतुलन के गुण होते हैं। काढ़े में मधु मिलाने से यह पाचन को दुरुस्त करता है और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। यह काढ़ा रोज सुबह खाली पेट लेने से पित्तज विकारों को शांत करता है, मूत्र संबंधी परेशानियों को कम करता है, और शरीर को शीतलता प्रदान करता है। अर्जुन और नीम की छाल शरीर में सूजन को कम करती है, आमलकी और हल्दी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं, जबकि नीलकमल मानसिक शांति और शरीर की ठंडक बनाए रखने में मदद करता है। नियमित सेवन से पित्तज-प्रमेह के लक्षणों में उल्लेखनीय सुधार होता है, साथ ही यह शरीर को दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।

शुक्रमेह में लाभकारी अर्जुन की छाल (Arjun chal benefits in Spermatorrhoea in Hindi)

शुक्रमेह, जो पुरुषों में अत्यधिक स्रावित सिमेन (वीर्य) की समस्या को दर्शाता है, न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है। आयुर्वेद में इसे विशेष रूप से शारीरिक कमजोरी और पित्त व कफ दोष के असंतुलन के परिणामस्वरूप माना गया है। अर्जुन की छाल और सफेद चंदन का काढ़ा शुक्रमेह के उपचार में प्रभावी सिद्ध होता है। अर्जुन की छाल में पाचक और शांतकारी गुण होते हैं जो शरीर के भीतर की गर्मी को शांत करते हैं और नाड़ियों को मजबूत बनाते हैं।

 सफेद चंदन की शीतल प्रकृति और इसकी पित्त शांत करने वाली विशेषता, अर्जुन के गुणों को और अधिक प्रभावी बनाती है। 10-20 मिली इस काढ़े का नियमित सुबह और शाम सेवन करने से न केवल स्राव की मात्रा नियंत्रित होती है, बल्कि इससे शरीर की उर्जा भी पुनः संचित होती है। यह काढ़ा शरीर को शांत करता है, स्नायु तंत्र को मजबूती प्रदान करता है, और तनाव को कम करने में भी मददगार होता है। इसके नियमित सेवन से न केवल शुक्रमेह से राहत मिलती है, बल्कि यह पुरुषों के संपूर्ण यौन और मानसिक स्वास्थ्य को भी सुधारता है।

मूत्राघात में फायदेमंद अर्जुन (Arjuna Chal Beneficial in Anuria in Hindi)


मूत्राघात, जिसे आमतौर पर पेशाब करते समय दर्द या जलन के रूप में अनुभव किया जाता है, पित्त दोष, मूत्र मार्ग में संक्रमण, या शरीर में अत्यधिक गर्मी के कारण हो सकता है। यह समस्या न केवल शारीरिक असुविधा देती है बल्कि मानसिक तनाव भी पैदा करती है। अर्जुन की छाल, अपने प्राकृतिक शीतलन और सूजन-रोधी गुणों के लिए आयुर्वेद में प्रसिद्ध है, मूत्राघात में राहत दिलाने में अत्यधिक प्रभावी है। अर्जुन की छाल का काढ़ा मूत्र मार्ग की सूजन को कम करता है, संक्रमण को शांत करता है, और मूत्र प्रवाह को सहज बनाता है। 20 मिली काढ़े का नियमित सेवन शरीर से अतिरिक्त पित्त को संतुलित करता है, जलन और दर्द को कम करता है, और मूत्र मार्ग को शुद्ध करने में मदद करता है। इसका उपयोग न केवल लक्षणों को राहत देता है बल्कि बार-बार होने वाले मूत्राघात की पुनरावृत्ति को रोकने में भी सहायक होता है। इसके साथ ही यह मूत्राशय को भी मजबूती प्रदान करता है, जिससे समग्र मूत्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।

रक्तप्रदर (अत्यधिक रक्तस्राव) में फायदेमंद अर्जुन (Arjuna to Get Relief in Metrorrhagia in Hindi)

रक्तप्रदर, महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान असामान्य रूप से अधिक मात्रा में रक्तस्राव होने की स्थिति है, जो शारीरिक कमजोरी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए अर्जुन की छाल को आयुर्वेद में विशेष रूप से उपयोगी माना गया है। अर्जुन की छाल के काढ़े का सेवन अत्यधिक रक्तस्राव को नियंत्रित करने में सहायक होता है, क्योंकि इसमें एंटी-हेमोरहेजिक (रक्तस्राव रोकने वाले) और शीतलन गुण होते हैं।

 उपयोग विधि: 1 चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को 1 कप दूध में डालकर धीमी आंच पर उबालें। इसे तब तक पकाएं जब तक दूध आधा न रह जाए। इस काढ़े में थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर इसे गुनगुने रूप में दिन में तीन बार सेवन करें। नियमित सेवन से रक्तस्राव की मात्रा कम होती है, शरीर में रक्त की कमी दूर होती है, और मासिक धर्म चक्र संतुलित होता है। अर्जुन की छाल का यह उपाय न केवल रक्तप्रदर में राहत देता है, बल्कि इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण महिलाओं के समग्र स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं। यह गर्भाशय को मजबूती प्रदान करता है और हार्मोनल संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे महिलाओं का मासिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।

हड्डी जोड़ने में करे मदद अर्जुन (Arjuna Chal Beneficial in Bone Fracture in Hindi)

अगर किसी कारण हड्डी टूट गई है या हड्डियां कमजोर हो गई हैं तो अर्जुन छाल के फायदे बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। अर्जुन छाल का प्रयोग करने से हड्डी के दर्द से न सिर्फ आराम मिलता है बल्कि हड्डी जुड़ने में भी सहायता मिलती है।

  • एक चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती जाती है। भग्न अस्थि या टूटी हुई हड्डी के स्थान पर इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बाँधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
  • अर्जुन की छाल से बने 20-40 मिली क्षीरपाक में 5 ग्राम घी एवं मिश्री मिलाकर पीने से अस्थि भंग (टूटी हड्डी) में लाभ होता है।
  • अर्जुन की त्वचा तथा लाक्षा को समान मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। 2-4 ग्राम में गुग्गुलु तथा घी मिलाकर सेवन करने से तथा भोजन में घी व दूध का प्रयोग करने से शीघ्र भग्न संधान होता है।
  • समान मात्रा में हड़जोड़, लाक्षा, गेहूँ तथा अर्जुन का पेस्ट (1-2 ग्राम) अथवा चूर्ण (2-4 ग्राम) में घी मिलाकर दूध के साथ पीने से अस्थिभग्न एवं जोड़ो से हड्डियों के छुट जाने में लाभ होता है।

कुष्ठ में फायदेमंद अर्जुन का चूर्ण (Arjun Chal Powder to Treat Leprosy in Hindi)

अर्जुन छाल के एक चम्मच चूर्ण को जल या दूध के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को जल में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में तथा व्रण में लाभ होता है। अर्जुन छाल का काढ़ा बनाकर पीने से भी कुष्ठ में लाभ होता है।

अल्सर का घाव करे ठीक अर्जुन की छाल (Arjuna Chal Heals Ulcer in Hindi)

अल्सर या घाव-कभी-कभी अल्सर का घाव सूखने में बहुत देर लगता है या फिर सूखने पर पास ही दूसरा घाव निकल आता है, ऐसे में अर्जुन का सेवन बहुत ही फायदेमंद होता है। अर्जुन छाल को कुटकर काढ़ा बनाकर अल्सर के घाव को धोने से लाभ होता है।

पिंपल्स से दिलाये छुटकारा अर्जुन की छाल (Arjuna Tree to Treat Pimples  in Hindi)

आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में मुँहासे से कौन नहीं परेशान है! लेकिन अर्जुन की छाल न सिर्फ मुँहासों से छुटकारा दिलाने में मदद करेगा बल्कि चेहरे की कांति भी बढ़ जायेगी। अर्जुन की छाल के चूर्ण को मधु में मिलाकर लेप करने से मुँहासों तथा व्यंग में फायदा मिलता है।

सूजन के समस्या में अर्जुन का प्रयोग (Arjuna to Treat Inflammation in Hindi)

-अर्जुन का काढ़ा या अर्जुन की छाल की चाय बनाकर पीने से सूजन कम होता है। (गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात् अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर के किसी अंग में सूजन आ जाने पर भी अर्जुन का प्रयोग किया जा सकता है।)

अर्जुन के जड़ के छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ के छाल के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में नियमित सुबह शाम दूध के साथ सेवन करने से दर्द तथा सूजन कम होती है।

रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना) में फायदेमंद अर्जुन (Arjuna Chal Beneficial Haemoptysis ya Raktpitta in Hindi)

अगर रक्तपित्त की समस्या से ग्रस्त हैं तो अर्जुन का सेवन करने से जल्दी आराम मिलेगा। 2 चम्मच अर्जुन छाल को रात भर जल में भिगोकर रखें, सबेरे उसको मसल-छानकर या उसको उबालकर काढ़ा बनाकर या अर्जुन की छाल की चाय की तरह से पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

बुखार में फायदेमंद अर्जुन (Arjun Chal Beneficial in Fever in Hindi)

अगर मौसम के बदलने के वजह से या किसी संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो उसके लक्षणों से राहत दिलाने में अर्जुन बहुत मदद करता है।

  1. अर्जुन छाल का काढ़ा या अर्जुन की छाल की चाय बनाकर  20 मिली मात्रा में पिलाने से बुखार से राहत मिलती है।
  2. 1 चम्मच अर्जुन छाल चूर्ण को गुड़ के साथ सेवन करने से बुखार का कष्ट कम होता है।
  3. 2 ग्राम अर्जुन छाल के चूर्ण में समान मात्रा में चंदन मिलाकर, शर्करा-युक्त तण्डुलोदक (चीनी और चावल से बना लड्डू) के साथ सेवन करने से अथवा अर्जुन छाल से बना हिम, काढ़ा, पेस्ट या रस का सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

क्षय रोग या टीबी में फायदेमंद अर्जुन (Arjuna Beneficial in Tuberculosis in Hindi)

क्षय रोग या तपेदिक के लक्षणों से आराम दिलाने में अर्जुन का औषधीय गुण काम करता है। अर्जुन की त्वचा, नागबला तथा केवाँच बीज चूर्ण (2-4 ग्राम) में मधु, घी तथा मिश्री मिलाकर दूध के साथ पीने से क्षय, खांसी रोगों  से जल्दी राहत मिलती है।

अर्जुन का उपयोगी भाग (Useful Parts of Arjuna)

आयुर्वेद में अर्जुन के तने की छाल, जड़, पत्ता तथा फल का प्रयोग औषधि के लिए किया जाता है।

अर्जुन का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए (How to Use Arjuna in Hindi)

बीमारी के लिए अर्जुन के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए अर्जुन का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।

चिकित्सक के परामर्श के अनुसार-

  • 5-10 मिली अर्जुन का रस ,
  • 20-40 मिली पत्ते का काढ़ा ,
  • 2-4 ग्राम अर्जुन के चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।

अर्जुन छाल क्षीरपाक कैसे बनाया जाता है? (How to Prepare Arjun Chal Khirpak?)

अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। 250 मिली दूध में 250 मिली पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें तीन ग्राम अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाए तब उतार लें। पीने योग्य होने पर  उसको छान लें और उसका सेवन करें। इससे हृदय रोग होने की संभावना कम होती है तथा हार्ट अटैक से बचाव होता है।

अर्जुन कहां पाया और उगाया जाता है? (Where is Arjuna Found or Grown in Hindi?)

पहाड़ी क्षेत्रों में नदी, नालों के किनारे 18-25 मी तक ऊँचे पंक्तिबद्ध हरे पल्लवों के वल्कल (bark) ओढ़े अर्जुन के वृक्ष ऐसे लगते हैं, जैसे महाभारत के पार्थ (महारथी अर्जुन) की तरह अनेक महारथी अक्षय तरकशों में अगणित अत्र लिए प्रस्तुत हों तथा महासमर में अनेक व्याधिरूपी शत्रुओं को नष्ट करने को एकत्र हुए हों। अर्जुन का वृक्ष जंगलों में पाया जाता है।

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